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नर्मदा साहित्य मंथन 2025 : सामान्य से परे सोचने के लिए मजबूर किया

उज्जैन टाइम्स ब्यूरो
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नर्मदा साहित्य मंथन 2025 


🖋️ मन मोहन शर्मा की कलम से 🖋️


किसी भी सांस्कृतिक उत्सव का वास्तविक की वास्तविक सफलता यह नहीं है, कि इसे कितनी अच्छी तरह से आयोजित किया गया है, बल्कि यह है कि स्व- समाज द्वारा, मंथन से निकली विमर्शजन मानस ने मस्तिष्क के चेतन में धारण किया है या नहीं ?


देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का हॉलहॉल में जिज्ञासु, चौकस और केंद्रित श्रोता, और हॉल के बाहर जीवंत चर्चा, यह संकेत देती है कि, मंथन का लक्ष्य, अपनी उम्मीद पर खरा उतरने की सक्षम बीज बो गया हैयह इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह पहली बार है, जब यह मंथन इंदौर में आयोजित किया गया है, और यह अपने वर्तमान नाम - मंथन के अनुरूप, प्रतिसाद पाने में सफल रहा - सोये हुए स्वजन - चेतन को जगाओ !


विश्व संवाद केंद्र मालवा, देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय इंदौर के पत्रकारिता एव जनसंचार अध्ययन शाला और मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् के द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित साहित्योत्सव में इंदौर के स्व- समाज लोग, विद्यार्थी, समाजसेवी, शिक्षित और यहां तक ​​कि व्यापारी भी तीन दिवसीय सम्मेलन में पूरे मन से सहभागिता की हैं।


सभी वक्ता, गहन विचारक औरअसाधारण पृष्ठभूमि से आते हैं, और हर एक श्रोता को, उन विषयों पर बोधगम्यता का एहसास करवा देते हैं, जो भारतीय लोगों के लिए, भारतीय संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण हैं


प्रत्येक वक्ता, द्वारा किए गए प्रयास श्रोताओं को यह एहसास कराते हैं कि वे कितना कम और कितना पूर्वाग्रहपूर्ण सोचते हैं या नहीं सोचते हैं और कैसे भारतीय दर्शन, अपने सभी उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से आगे बढ़ने का मार्ग प्रदान करता है। प्रत्येक वक्ता द्वारा विषय पर बिना किसी विचलन के प्रस्तुतिकरण पर कड़ी मेहनत की गई है.


नर्मदा साहित्य मंथन को वास्तव में खुद पर गर्व होना चाहिए कि नयेपन की तलाश में वे चमक-दमक के पीछे नहीं भागे। सिद्धांत के लिए किया जाने वाला गंभीर विचार-विमर्श / चिंतन कोवे समाज-आकांक्षाओं में दीप जलाने के कामयाब रहे। शायदइसका कारण मूल संगठन का अनुशासन है. 


कोई शक नहीं कि, कि नर्मदा साहित्य मंथन 2025 अपने घोषित उद्देश्य पर पूरी तरह खरा उतरता है।


मालवा अंचल में नर्मदा साहित्य मंथन ने विचारों की एक लहर पैदा की है, जिसे समाज ने बड़े पैमाने पर स्वीकार किया है, और आने वाले समय की इसके द्वार जो वैचारिक  अमृत निकला /निकलेगा है उसका लाभ मानव समाज लेगा। नर्मदा साहित्य मंथन ने सोच की एक लहर पैदा की है, जिसने प्रज्वलित दिमागों में जिज्ञासा पैदा की है और भारतीय आत्मा को सामान्य से परे सोचने के लिए मजबूर किया है.


सशुल्क कार्यक्रम में भाग लेने के लिए एकत्र हुए - तक्षशिला हॉल का पूरा हाउस इसकी भव्यता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।


सत्र दर सत्र, विषय दर विषयश्रोता  मंत्रमुग्ध थे। चूंकि, यह आयोजन पहली बार इंदौर में हो रहा है, इसलिए यह जानना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है कि इंदौर के लोगों की सोच और सांस्कृतिक जिज्ञासा कैसी है. 


पिछले 3 सालों में नर्मदा साहित्य मंथन ने एक लंबा सफर तय किया है। महेश्वर के तटों से लेकर अहिल्या बाई की छाया तक। इसने राष्ट्रीय सोच की एक नई लहर पैदा की है, जो तथ्यों या विषयों पर आधारित है, जो कभी मुख्यधारा में नहीं आ पाती थी. 


भारत का विचार, भारत को जानने के विचार में निहित है और ऐसे सांस्कृतिक उत्सव, जो भारतीयता को बढ़ावा देते हैं, युवाओं, आम लोगों को जागृत करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। केवल विषयों पर तथ्यात्मक प्रस्तुति की अवधारणा ने नर्मदा साहित्य मंथन को अद्वितीय बना दिया.


जय हो नर्मदा मैया की


मन मोहन शर्मा की कलम से 

98272 33734 

उज्जैन टाइम्स 

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